शुक्रवार, 14 मई 2010

आँचल ही न समाए तो क्या कीजे

आजकल सुबह-शाम की सैर भी सोने की चादर पे होती है। ज़मीं से आस्माँ तक सुनहले हो गए हैं। यक़ीन न हो तो ख़ुद देख लीजिए।
:)

हिमान्शु मोहन / Himanshu Mohan
http://sukhanvar.blogspot.com
http://sangam-teere.blogspot.com

Posted via email from Allahabadi's Posterous यानी इलाहाबादी का पोस्टरस

1 टिप्पणी:

फूलों से भरा दामन : शेर-ओ-शायरी

फूलों से भरा दामन : शेर-ओ-शायरी
फूल खुशी देते हैं ना!

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