गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

विदाई समारोह

श्री जे0पी0 पाण्डेय का उत्तर मध्य रेलवे अधिकारी संगठन की ओर से विदाई समारोह संपन्न हुआ। वे अपर मण्डल रेल प्रबंधक झाँसी होकर जा रहे हैँ।

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भाग्य-विधाता : आज फूल नहीं लाया हूँ

आज फूल नहीं फल लाया हूँ।
गर्मी के मौसम में होने वाला ये बेल का फल प्राचीन भारतीय आयुर्वेद में वर्णित तीन अमृत-फलों में से एक है। इसकी ख़ूबियों से तो ज़्यादातर लोग वाकिफ़ होंगे, मगर ज़रा डाल पे इसकी ख़ूबसूरती तो देखिए!
आप कह सकते हैं कि डाल पे तो हर चीज़ ख़ूबसूरत लगती है!
हाँ लगती तो है, मगर ख़ुद कटी हुई डाल या गिरा हुआ पेड़?
जनाब, वो भी ख़ूबसूरत लगता है, अगर आप उसका हौसला देखें कि जिस इन्सान ने उसे काट डाला हो, उसे नज़र-अन्दाज़ करके अपनी सारी जिजीविषा से वो पेड़ किस ऊर्जा का, किस कोशिश का परिचय देता है वापस अपनी जद्दोजहद शुरू करने में - ताकि वो उसी इन्सान की नस्लों को छाँह और पंछियों को आसरा दे सके।
इसीलिए आज ये तीसरी तस्वीर भी लाया हूँ - जिसमें उखड़े पड़े पेड़ से निकलती झूमती टहनियों को जैसे गर्मी की तकलीफ़ों से अगर सरोकार है तो सिर्फ़ इतना कि वो उस गर्मी में छाँह देने के अपने फ़र्ज़ को और शिद्दत से महसूस कर रही हैं और डाल, या धीरे-धीरे फिर से पूरा पेड़ बनने की कोशिश में लगी हैं।
ये नज़र-नज़र की बात है कि आप क्या देखते हैं, दर्द या राहत, ग़म या ख़ुशी, हार या हौसला!
जैसा हम देखते हैं, वैसा ही सोचते हैं; जैसा सोचते हैं, वैसा ही चुनते हैं और जैसा चुनते हैं, वैसा ही पाते भी हैं।
आप ही हैं अपने भाग्य-विधाता।
जब चु्नना अपने हाथ में है तो क्यों न बेहतर चुनाव किए जाएँ और उदासी न बाँटकर, उम्मीद बाँटी जाए!
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गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

सभा

सभा चल रही है। धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, रंगभेद जैसे मुद्दोँ पर विचार नहीँ होगा।

दहेज, आतंकवाद, कन्या-भ्रूण हत्या, घोटाले, आईपीएल, सानिया-शोएब, नोट-वोट-माला और आरक्षण आदि पर आदमीपन नहीँ दिखाया जाएगा। दुम का प्रयोग सामाजिक स्तर पर नहीँ, निजी तात्कालिक ज़रूरतोँ को स्वतः निपटाने हेतु किया जा सकता है।

बुनियादी मुद्दोँ जैसे भूख, आवास आदि पर प्रयास जारी रहेँगे, चर्चाएँ व सभाएँ नहीँ की जाएँगी।

मतभेद की दशा मेँ निपटारा कोने मेँ नहीँ, खुले मैदान मेँ होगा-और बीच मेँ कोई नहीँ आएगा। अभी सामूहिक स्वल्पाहार पर संगठन को मज़बूत करने के लिए कार्यकर्ता जुटे रहेँगे।

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मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

खेती और बागवानी : अवैज्ञानिक तरीके और पर्यावरण को नुक्सान

पर्यावरण को नुक्सान पहुँचाने में एक दूसरे की होड़ में हैं सब।
इन चित्रों में देखिए - एक निहायत अवैज्ञानिक तरीक़ा जो अपनाया जाता है पतझड़ के बाद पत्तियों के निस्तारण का -  उन्हें जला डालते हैं। दो चित्रों में झुलसे हुए पेड़ दिख रहे हैं और तीसरे में किस तरह झड़ी हुई पत्तियाँ - जहाँ जैसे थीं, जला दी गई हैं और राख दिख रही है।
दु:खद बात यह है कि यह राजकीय उद्यान में - जहाँ उन्नत तकनीक की कृषि, बागवानी और पौधशाला का विकास आदि करने के लिए एक पूरा सरकारी अमला नियोजित है, वहाँ भी हो रहा है। नासमझी में इसका अनुकरण भी बहुत से लोग कर सकते हैं।
नतीजतन जो पर्यावरण का नुक्सान - धुआँ - प्राकृतिक जैव खाद जो बन सकती थी, उसका नुक्सान - जैव माइक्रोबियल उत्पादों का राख में तब्दील हो जाना - ये सब तो होता ही है; ऊपर से इस सुलगती आग से कई बार अग्निकाण्ड भी हो जाते हैं।
मेरी मुख्य चिन्ता इन सुलगती पत्तियों से झुलसने वाले पेड़ों को लेकर है। पेड़ कई बार तो तना/जड़ें झुलस जाने के कारण मर जाते हैं, कई बार अगले मौसम तक फूल-फल नहीं पाते और कई बार इन पेड़ों पर बसेरा करने वाले पक्षी, मधुमक्खी के छ्त्ते और अन्य कीट-पतंगे आदि भी या तो नष्ट हो जाते हैं या भौगोलिक तौर पर अपना स्थान बदल लेते हैं और इस तरह प्रकृति से अनावश्यक छेड़-छाड़ से प्रकृति की "डाइवर्सिटी" बदल जाती है।
पतझड़ के ठीक बाद गर्मी आ चुकी होती है और पानी का संकट प्रारम्भ हो जाता है, जिससे इस स्थिति में सुधार और भी दुष्कर हो जाता है।
पेड़ों को सीधे होने वाला नुक्सान टाला जा सकता है, सिर्फ़ थोड़ी सी जागरूकता और मालियों व किसानों की शिक्षा से
कि इस तरह जला कर पत्तियों से केवल मच्छर भगाए जाते हैं जो एक या दो दिन में फिर वापस आ जाते हैं, जबकि नुक्सान अनेक हैं।
नई कृषि तकनीकों में एक मशीन भी शामिल है जो गेहूँ, धान आदि की बालियाँ काट लेती है, जिससे अन्न की बर्बादी तो बहुत कम होती है, मगर शेष पौधा खेत में खड़ा ही रहता है। इसके बाद इस डंठल या तने को सीधे आग लगा कर जला दिया जाता है और खेत में बाद में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर उर्वराशक्ति बढ़ा ली जाती है।
इस प्रक्रिया में खेत की नैसर्गिक उर्वरा शक्ति का ह्रास तो लम्बी अवधि में होता है, मगर भूसे का नुक्सान तुरन्त ही हो जाता है।
परिणाम यह होता है कि जब तक यह प्रक्रिया केवल कुछ बड़े काश्तकारों तक सीमित है, तब तक शायद असर न पता चले, मगर बड़े स्तर पर यह पशुओं के चारे की समस्या को भी विकरालता प्रदान कर सकती है।
पता नहीं कहीं मेरी चिन्ता अतिवादिता या निराशावादिता का रूप तो नहीं ले रही!

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गुलमोहर

गुलमोहर की ये तस्वीरें मैंने आज चन्द्रशेखर आज़ाद उद्यान उर्फ़ कम्पनी बाग़ में लीं (सुबह 6:45) और इनसे ये साबित हो रहा है कि गुलमोहर के फीकेपन के लिये गर्मी सीधे ज़िम्मेदार नहीं है। पानी पाने वाले पेड़ के फूलों में फीकापन नहीं आया, जबकि पानी की कमी वाले पेड़ के फूल फीके हैं यक़ीनन।
मगर पानी की कमी के लिए तो गर्मी ही ज़िम्मेदार है न!
तो ज्ञानदत्त जी की बात …इति सिद्धम्
 

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मट्ठा मौसम

ये है वो मट्ठे का गिलास जो हमेँ आज ऑफ़र किया गया, सत्तू क्लब की वार्षिक सदस्यता के साथ।

उत्तर मध्य रेलवे के मानचित्र पर यह रखा भी वहीँ है जहाँ से आया है यानी खागा और भरवारी के बीच।

चियर्स!

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सोमवार, 19 अप्रैल 2010

अनुरञ्जिनी : 9

ये रहीं फूलों की होली की तस्वीरें, मयूर नृत्य की कल लगाऊँगा।
तस्वीरों की गुणवत्ता कम है, मोबाइल से दूर से ली गई हैं।
अद्भुत अनुभव होता है इस मथुरा की फूलों की होली को देखना। अलौकिक। यह मैंने दूसरी बार देखा और महसूस किया। पहली बार 2006 में देखा था। कोशिश करूँगा कुछ समय बाद कि अगर वीडियो उपलब्ध हुआ तो यहाँ ला गेरूँ। इसे बाँटना भी सुखद होता है और पाना भी।
उत्सव और महिला कल्याण संगठन की रिपोर्टिंग भी करनी है अभी तो! वैसे रिपोर्टिंग तो यह भी है ही।

 

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बूझो तो जानें

भाई हमारा इरादा पहेली बुझवाने का या कुछ आलतू-फालतू नहीं है। हम तो सिर्फ़ ये भूल गए हैं कि ये फ़ोटो हमने कहाँ खींचा है। सिर्फ़ ये याद है कि इस बिल्डिंग के सारे तलों पर बहार का अनुग्रह देखकर हमने चलती गाड़ी से हाथ निकाल कर मोबाइल कैमरा ऊपर को कर के फ़ोटो खींच लिया।
भूल गए वर्ना पहले ही कहीं चेंप देते या बज़ा देते।
आज मोबाइल का मेमोरी कार्ड निकाल कर फ़ॉर्मैट करना पड़ा तो फ़ोटो मिल गया। जिसका हो ले जाए, बस बता दे कि कहाँ का है।
हम फालतू की उलझन से तो छूटें।
ससुरी गर्मी इतनी पड़ रही है कि लग रहा है खुपड़िया पे हीट सिंक लगवा लें। प्रवीण पाण्डेय जी ने पुराने कम्प्यूटर की बात की है, हमारा भी लगता है सीपीयू - रैम बदलवा तो सकते नहीं, अपग्रेड करा लें का।
तभी भूल गए लगता है।

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अनुरंजिनीः8

उमरेमकसं की सांस्कृतिक संध्या मेँ मथुरा की "फूलोँ की होली" : ब्रज कलाकारोँ द्वारा मयूर नृत्य प्रस्तुति

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अनुरंजिनीः7

  
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उमरेमकसं की सांस्कृतिक संध्या मेँ मनोज गुप्ता के सुर

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अनुरंजिनीः6

  
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उमरेमकसं की सांस्कृतिक संध्या मेँ मनोज गुप्ता के सुर

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अनुरंजिनीः5

  
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उमरेमकसं की सांस्कृतिक संध्या मेँ तृप्ति शाक्याः नमक इस्क का

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अनुरंजिनीः3

उ0म0रे0म0क0सं0 सांस्कृतिक संध्या मेँ मनोज गुप्ता और तृप्ति शाक्या की स्वर (सुर) प्रस्तुतियाँ

  
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अनुरंजिनीः4

  
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उमरेमकसं सांस्कृतिक संध्या मेँ सुर

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रविवार, 18 अप्रैल 2010

अनुरंजिनीः2

  
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उत्तर मध्य रेलवे महिला कल्याण संगठन की सांस्कृतिक संध्या मेँ ठुमरी प्रस्तुति

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अनुरंजिनी

उत्तर मध्य रेलवे महिला कल्याण संगठन की सांस्कृतिक संध्या मेँ दुर्गा दुर्गतिनाशिनी कथक प्रस्तुति पूर्णिमा श्रीवास्तव द्वारा

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शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

कोलकाता का झूला पुल

यह पुल बीच से आधार पर झूल कर घूमता है और दिख रहे दीर्घवृत्ताकार आधार पर टिक कर जहाज़ोँ का बंदरगाह मेँ आना जाना संभव हो पाता है।

यह चालू हालत मेँ है। सुरक्षा कारणोँ से चित्र केवल अंशत: दिखाया गया है।

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मुंबई : काव्यचित्र

सपनोँ का पुल : वांद्रे-वर्ली समुद्र पर

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फूलों से भरा दामन : शेर-ओ-शायरी

फूलों से भरा दामन : शेर-ओ-शायरी
फूल खुशी देते हैं ना!

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