शनिवार, 8 मई 2010

यही बाक़ी निशाँ होगा

चन्द्रशेखर आज़ाद की प्रतिमा, शहीद हुए जहाँ वो उसी स्थान पर लगभग। मेले हर बरस लगने की उम्मीद भी कुछ ज़्यादा ही लगा ली क्या रामप्रसाद बिस्मिल ने?

सालाना माल्यार्पण तो होता है यहाँ और उस दिन आइस्क्रीम और चुरमुरे के ठेले भी आ जाते हैँ एक दो, मेला..

पता नहीँ और जगहोँ पर यह भी होता है या नहीँ!

अब सेलेबुलता के आधार पर मेले प्रायोजित किए जाते हैँ।

जय हो!

Posted via email from Allahabadi's Posterous यानी इलाहाबादी का पोस्टरस

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