सोमवार, 19 अप्रैल 2010

बूझो तो जानें

भाई हमारा इरादा पहेली बुझवाने का या कुछ आलतू-फालतू नहीं है। हम तो सिर्फ़ ये भूल गए हैं कि ये फ़ोटो हमने कहाँ खींचा है। सिर्फ़ ये याद है कि इस बिल्डिंग के सारे तलों पर बहार का अनुग्रह देखकर हमने चलती गाड़ी से हाथ निकाल कर मोबाइल कैमरा ऊपर को कर के फ़ोटो खींच लिया।
भूल गए वर्ना पहले ही कहीं चेंप देते या बज़ा देते।
आज मोबाइल का मेमोरी कार्ड निकाल कर फ़ॉर्मैट करना पड़ा तो फ़ोटो मिल गया। जिसका हो ले जाए, बस बता दे कि कहाँ का है।
हम फालतू की उलझन से तो छूटें।
ससुरी गर्मी इतनी पड़ रही है कि लग रहा है खुपड़िया पे हीट सिंक लगवा लें। प्रवीण पाण्डेय जी ने पुराने कम्प्यूटर की बात की है, हमारा भी लगता है सीपीयू - रैम बदलवा तो सकते नहीं, अपग्रेड करा लें का।
तभी भूल गए लगता है।

Posted via email from Allahabadi's Posterous यानी इलाहाबादी का पोस्टरस

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