मंगलवार, 20 जुलाई 2010

रात की ताज़ा ख़बर

भेड़िए की माँद से
रात के चाँद की
पूनम के साथ मुलाक़ात होती है
भेड़िया रात चाहता है
नज़रें चाँद पर गड़ाए
मगर रात को चाँद चाहिए
भेड़िया नहीं
भेड़िया क्या करे? कहाँ जाए?
जब-जब रात चाँद को बुलाना ज़रूरी न समझे
तब-तब भेड़िए बाल खोल कर
ठण्डे झरने में नहाते हैं;
रोटी मज़्दूर और भूख का टूटता रिश्ता बचाने में लगी है
मगर भेड़िए तक्सीम हुए जाते हैं
बरहना-सर, आबला-पा, बेनज़रो-नियाज़-
घण्टियाँ घण्टों बजें पर एक भी बिल्ली नहीं आती
तेंदुए चूहे खाते हैं
और लाल-लाल होठों से
राम-राम जपते नहीं
अल्लाह को पुकारते नहीं
जागते नहीं
सोते नहीं
सिर्फ़,
ऊँघते रहते हैं -
डालों पर
जो झुक कर
संसद तक आ पहुँचती हैं।
यक़ीन करो
यह एक बुरा ख़ाब नहीं
न माज़ी है
न मुस्तक़बिल
सिर्फ़
रात की ताज़ा ख़बर है।
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इस रचना से -
रचनाकार की
राय मिलना ज़रूरी नहीं
बिना किसी बाहरी ज़ोर-दबाव के
बिना नशे की हालत में
अपने होशो-हवास में
बिना किसी मजबूरी के
यूँही
लिख दिया
ताकि सनद रहे
और
वक़्ते-ज़रूरत
किसी के किसी काम न आए

Posted via email from Allahabadi's Posterous यानी इलाहाबादी का पोस्टरस

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