गुरुवार, 11 मार्च 2010

आराध्य को प्रणाम

यह अपने आराध्य को प्रणाम है मेरा। माना कि चित्र कुछ विशेष अच्छे न लग रहे हों, पर यह हैं तो मेरे आराध्य के ही, जहाँ श्रद्धा, निष्ठा और प्रेम का महत्व होता है वहाँ रूप आकार गौण हो जाते हैं। इसी आस्था और प्रेम के सहारे देख पाते हैं लोग पत्थर में भगवान।
मुझे भी ऐसा ही लगता है कि हर रूप में नारायण ही मिलते हैं, चाहे वह मित्र का रूप हो या शत्रु का; संबंधी का हो या अजाने का। इसी से प्रणाम सभी को, आपको भी, क्योंकि आप भी भगवान ही हैं मेरे लिए तो।आज बस इतना ही।

Posted via email from Allahabadi's Posterous यानी इलाहाबादी का पोस्टरस

1 टिप्पणी:

फूलों से भरा दामन : शेर-ओ-शायरी

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फूल खुशी देते हैं ना!

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