फ़ुटनोट का फ़ुटनोट - पिछ्ले नवरात्रि के दौरान अधिकांश चित्र माता दुर्गा जी के जो दिखे, उनमें उनका वाहन बाघ चित्रित था, शेर नहीं। कल को 1411 बचे बाघ…माता वाहन न बदल लें कहीं।
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यानी एक कोशिश…
फ़ुटनोट का फ़ुटनोट - पिछ्ले नवरात्रि के दौरान अधिकांश चित्र माता दुर्गा जी के जो दिखे, उनमें उनका वाहन बाघ चित्रित था, शेर नहीं। कल को 1411 बचे बाघ…माता वाहन न बदल लें कहीं।
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प्रश्न कितने हैं न जाने, एक भी उत्तर नहीं
यक्ष आतुर प्रतीक्षारत, वह स्वयम् प्रस्तर नहीं
परस्पर भाषा-कलह में एक भी अ-“क्षर” नहीं
जूझती बैसाखियों पर मौत लादे प्रश्नहीन
मूर्त्त जीवट स्वयं, निस्पृह लोग ये कायर नहीं
प्रश्न-उत्तर, लाभ की संभावनाओं से परे
अर्थवेत्ता-प्रबन्धक कोई अत: तत्पर नहीं
सब सहज स्वीकारने का मार्ग सर्वोत्तम सही
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प्रश्न इकट्ठे होते जाएँ और समाधान न हो पाए तो अपनी बौद्धिक क्षमता की सीमाओं का एहसास और शिद्दत से होता है।
जब दूसरों से भी उत्तर न मिले तो असहायता का।
क्या होता है जब प्रश्न-ही-प्रश्न हों चहुँ-ओर? अस्तित्व ही प्रश्न लगे?
प्रश्नों से घिरे रहकर मनुष्य यक्षत्व को प्राप्त हो जाता है।
दूसरों को धमकाता है – प्यासे रहो!
यदि मेरी जिज्ञासा की प्यास बुझाए बिना जल पिया तो पत्थर के हो जाओगे।
वास्तव में धमकाता नहीं, यक्ष सचेत करता है कि यदि प्रश्नों के उत्तर न खोजे तुमने, तो आज नहीं तो कल, पत्थर का तो तुम्हें होना ही है।
मगर उनका क्या जो प्रश्न ही नहीं पूछते?
जिन्हें सब-कुछ सहज स्वीकार्य है?
चैन नहीं खोना है तो प्रश्न मत पूछो। स्वीकार में शान्ति है और जिज्ञासा में बेचैनी। मुमुक्षु को या तो अपनी सब जिज्ञासाएँ शान्त करनी होंगी, या फिर प्रश्न न पूछ कर, सब कुछ सहज स्वीकारना होगा।
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जंग छिड़ने ही वाली है (गर्मी से), कुमुक (कूलरों की शक्ल में) मोर्चे पर पहुँच चुकी है। रसद (पानी-बिजली) का पता नहीं क्या होगा इस बार जंग के दौरान।
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ग्रीष्म के स्वागत में ककड़ियाँ हाज़िर हो चुकीं कब से - लैला की उँगलियाँ-मजनूँ की पसलियाँ। मगर फ़िलहाल ज़ोर पर हैं चैत्र नवरात्र की तैयारियाँ।
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यूँही नहीँ बहार का झोँका भला लगा
ताज़ा हवा के याद पुरानी भी साथ है परवीन शाक़िरPosted via email from Allahabadi's Posterous यानी इलाहाबादी का पोस्टरस
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बॉटलब्रश लुभाते हैँ और स्वागत है ग्रीष्म!
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मगर तैयारियाँ हमेशा कम पड़ जाती हैँ
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और शुरू हो गई है इंसानी जद्दोजहद इसे झेलने और इसका मज़ा लेने, दोनोँ की
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यह शायद हमारे अपने चुने विकल्प हैँ, या जीवन के ... पर जो भी हैं, सिर माथे हैँ।
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घर तक नहीँ आ सका मगर उसे घर का खाना पहुँचा दिया मैँने, फिर निरीक्षण पर निकल गया। उसकी गाड़ी डेढ़ घण्टे बाद गई।
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कल 13 मार्च को मेरी मुलाकात हुई अपने बेटे सत्यांशु से, इलाहाबाद स्टेशन पर। हावड़ा से मुंबई जाते हुए..
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