बुधवार, 1 सितंबर 2010

राम तेरी गंगा

हमने गंगा किनारे की रिपोर्टिंग जान बूझ कर छोड़ रखी है। सही समझे आप - एक तो ज्ञानदत्त जी के भरोसे - जो ज़िम्मेदारी से कर ही रहे हैं ख़बरनवीसी अपने अलग ही रोचक मनभावन और गहन सोच में डूबे अन्दाज़ में…
डूबने से याद आया कि हम जब पिछली बार गए संगम तीरे - तो ठिठक गए गंगा मैया तीरे - काहे से कि ऊ भी कानी - का - का बुड़ावै माँ लगी हैं आजकल। अब तो प्रेम की नैया और हमरी गंगा मैया - दूनों हैं राम के भरोसे…
बस्स।
बाकी भैंसिया से आजकल न कुच्छौ बचा है, न गंगा मैया कौनो परहेज मनती हैं भैंसिया होय चाहे भैंसिया क्यार दूध - फट्ट देना मिलै का तयार हैं - अब भले लोग नाले का पानी मिलावैं - कि मिलावैं यूरिया, औ नाम धरावैं गंगा मैया का -कि गंगा मैया का हम लोग नाहीं - राज कपूर मैला किहिन रहैं और बताय तौ गए रहे ऊ राम जी का - कि तोहार गंगा…

Posted via email from Allahabadi's Posterous यानी इलाहाबादी का पोस्टरस

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