हिमान्शु मोहन || Himanshu Mohan
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यानी एक कोशिश…
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एक और काव्यचित्र : दोस्ती...
मई की आख़री शामोँ मेँ से एक...
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यह एक काव्यचित्र भी है और मेरी एक ख़्वाहिश भी, एक ख़्वाब भी जो मैँ जानता हूँ कभी पूरा नहीँ होगा...
अधूरा रहेगा, मेरी ही तरह...
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हर सत्य बना डालो सुंदर,
पर सभी अमंगल शिवम् हरे
सारे रत्नों को बाँटे तो,
पर गरल-पान वह स्वयम् करे
विध्वंस करो, पर याद रहे!
उससे दूना निर्माण करो
स्वर्णिम कल की बलिवेदी पर,
अर्पित तुम अपने प्राण करो
जब दर्द हृदय में उठे; नहीं-
आँखें आँसू की ओट करो
हे नवयुग के निर्माता तुम
दूनी ताकत से चोट करो
गढ़-गढ़कर प्रतिमा कल की तुम,
हो सके-आज तैयार करो
कह दो तानाशाहों से- मत
जज़्बातों का व्यापार करो
है आज रुष्ट जो मूर्ति, तुम्हारी छेनी और हथौड़े से
कल वह महत्व पहचानेगी, लोगों के शीश झुकाने का
जो आज बना विद्रोही है, हर रूढ़ि और अनुशासन का-
इतिहास गवाही देता वह - निर्माता नए ज़माने का!
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हिमान्शु मोहन / Himanshu Mohan
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चन्द्रशेखर आज़ाद की प्रतिमा, शहीद हुए जहाँ वो उसी स्थान पर लगभग। मेले हर बरस लगने की उम्मीद भी कुछ ज़्यादा ही लगा ली क्या रामप्रसाद बिस्मिल ने?
सालाना माल्यार्पण तो होता है यहाँ और उस दिन आइस्क्रीम और चुरमुरे के ठेले भी आ जाते हैँ एक दो, मेला..
पता नहीँ और जगहोँ पर यह भी होता है या नहीँ!
अब सेलेबुलता के आधार पर मेले प्रायोजित किए जाते हैँ।
जय हो!
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मैंने यह तय किया है कि पोस्टरस पर कण्टेण्ट पोस्टें और अन्य माइक्रो-पोस्टें जो सीधे मोबाइल से होती हैं, जारी रखूँगा। इस क्रम में ब्लॉगर पर ऑटोपोस्टिंग संगम तीरे से बन्द कर के दूसरे ब्लॉग पर शुरू कर दूँगा और वर्डप्रेस पर जारी रखूँगा इसी "इलाहाबादी बतकही" को जो नमस्तेजी वाले एड्रेस पर है। आख़िर पोस्टरस ने ही मेरी ब्लॉगिंग शुरू करवाई थी और इतना आसान भी तो है यहाँ पोस्ट करना!
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